विधुत कनवर्टर किसे कहते है | कनवर्टर कितने प्रकार के होते हैं | कनवर्टर का क्या काम है | सिंगल फेज रोटरी कन्वर्टर किसे कहते है | थ्री फेज रोटरी कन्वर्टर किसे कहते है | मेटल रेक्टिफायर क्या है | सिलेनियम मैटल रेक्टिफायर क्या है |
परिवर्तक (Converter) के द्वारा AC को DC में बदला जाता है| भारत तथा विश्व में प्रत्यावर्ती धारा (AC) का उपयोग सबसे अधिक किया जाता है इसका उत्पादन वितरण तथा पारेषण आसान होता है और इस कारण यह DC की तुलना में कम खर्च पर संचालित हो जाती है परंतु बहुत सारे कार्य ऐसे होते है जो DC Supply के द्वारा संपन्न किए जाते है |
AC को DC में बदलने की आवश्यकता क्यो होती है ?
एसी को डीसी में बदलने की आवश्यकता निम्न है –
- बैटरी चार्जिंग
- इलेक्ट्रो प्लेटिंग क्रिया के लिए
- इलेक्ट्रिसिटी को संचित करने के लिए
- कई प्रकार के टाइम स्विच में रिले मे
इन सभी कार्यो में DC की आवश्यकता होती है इसलिए AC को DC में बदला जाता है जबकि उत्पादन पारेषण व संचरण मे अपेक्षाकृत AC में कम खर्च होता है |
कन्वर्टर (परिवर्तक) कितने प्रकार के होते है ?
- AC का DC में परिवर्तन = रेक्टिफायर के द्वारा
- DC का DC में परिवर्तन = चौपर के द्वारा
- DC का AC में परिवर्तन = इन्वर्टर के द्वारा
- AC का AC में परिवर्तन = साइक्लोकन्वर्टर द्वारा (आवर्ती परिवर्तन के लिए)
मोटर जनरेटर सेट क्या है?
- यह AC को डीसी में बदलता है |
- इसमे एक फेज या थ्री फेज मोटर और शन्ट तथा कम्पाउंड जनित्र होता है |
- इन दोनों को यांत्रिक रूप से शाफ्ट से जोड़ दिया जाता है |
- इस जनित्र में डीसी वोल्टेज को आवश्यकता अनुसार घटाने तथा बढ़ाने के लिए शन्टं फील्ड रेगुलेटर का उपयोग किया जाता है |
- यदि AC इनपुट वोल्टेज में परिवर्तन होता है तो DC आउटपुट में इसका प्रभाव कम होता है |
- इसकी सहायता से अधिक धारा को आसानी से परिवर्तित किया जा सकता है |
- यदि मोटर व जनित्र दोनों का उपयोग करते है तो दक्षता घटती है और स्थापना लागत अधिक होती है तथा जगह अधिक घेरता है |
रोटरी कन्वर्टर (परिवर्तन) क्या है ?
इसमें केवल एक मशीन की द्वारा एसी को डीसी मे तथा डीसी को एसी में बदला जाता है |
रोटरी कन्वर्टर दो प्रकार के होते है –
1. सिंगल फेज रोटरी कन्वर्टर
2. थ्री फेज रोटरी कन्वर्टर
सिंगल फेज रोटरी कन्वर्टर किसे कहते है ?
- सिंगल फेज रोटरी कन्वर्टर मे शन्ट अथवा कंपाउंड मशीन का प्रयोग किया जाता है एक तरफ इसके स्लिप रिंग तथा दूसरी ओर स्प्लिट रिंग शाफ्ट पर लगाया जाता है |
- इसके द्वारा AC को DC दोनों सप्लाई प्राप्त कि जाती है इस मशीन में एक डैंपिंग वाइंडिंग भी संयोजित होती है डैंपिंग वाइंडिंग को दो अतिरिक्त स्लिप रिंग के द्वारा शॉर्ट सर्किट कर दिया जाता है |
- इस मशीन से वाइंडिंग में दो टेप निकाले जाते है अथार्त वेव वाइंडिंग का प्रयोग किया जाता है |
- इसमें दोनो टेपिंग के बीच 180° का फेज अंतर होता है यह कन्वर्टर यदि AC स्रोत से संयोजित होता है तो ऑटो सिंक्रोनस मोटर की भांति स्टार्ट होता है और कम्युटेटर से हमें DC प्राप्त होती है |
थ्री फेज रोटरी कन्वर्टर किसे कहते है ?
- इसमें तीन टेपिंग निकाली जाती है जिनके बीच में जंतर 120° का होता है |
- इस मोटर को स्टार्ट करने के लिए स्टार्टिग में कम वोल्टेज करना होता है तथा जब यह अपनी पूर्णतः गति पर घूमने लग जाती है तो उसे पूर्ण वोल्टेज प्रदान किया जाता है |
- वोल्टेज को कम करने के लिए स्टार्टर के रूप में स्टेप डाउन ट्रांसफॉर्मर का प्रयोग किया जाता है |
- जब यह AC को DC में बदलता है तो दक्षता अधिक होती है और जब यह DC को AC में बदलता है तो दक्षता कम होती है |
मेटल रेक्टिफायर क्या है ?
- इसका प्रयोग AC को DC में बदलने के लिए किया जाता है |
- यह 5 एंपियर तक की धारा व 18V तक को बदलता है |
- इसका उपयोग निम्न वोल्टेज तथा निम्न धारा को AC को DC में बदलने के लिए किया जाता है |
- इसको AC को DC में बदलने के लिए परिपथ के श्रेणी क्रम में संयोजित करते है |
इन्वर्टर (Inverter) क्या है ?
यह ऑइसोलेटर की सहायता से सबसे पहले DC को AC मे बदलेगा तथा आवर्ती 50Hz निर्धारित करता है उसके बाद एम्पलीफायर के द्वारा वोल्टेज को बढ़ाया जाता है इस विधि से हमें 230 वोल्टेज AC प्राप्त करते है |
कॉपर ऑक्साइड रेक्टिफायर क्या है?
इसमे कुचालक परत कॉपर ऑक्साइड की बनाई जाती है सिलेनियम की दक्षता कॉपर ऑक्साइड रेक्टिफायर से अधिक होती है |
सिलेनियम मैटल रेक्टिफायर क्या है ?
इसमे फर्क बस इतना ही होता है मेटल रेक्टिफायर की तुलना में कुचालक परत सिलेनियम नामक पदार्थ की बनाई जाती है |
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